धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। यह आत्माएं मृत्यु के बाद एक वर्ष से लेकर सौ वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहते हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है।
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